milap singh bharmouri

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Monday 16 September 2013

सैर मुबारक !

कियां  करी दस्सू
तुसू  जो वो सखियों 
जली गो दिला  मंज
 हा जेडा  दुःख
लाडा  मुलु हा
ईना  जिना  जलबौना 
जेजो हैरी - मघैरी  रा
पता न कुछ 


हैरी री  सब्बी  दोस्ता  जो बड़ी -बड़ी मुबारक !

सैर मुबारक !

मिलाप सिंह भरमौरी 

3 comments:

  1. Milap ji!
    apke naam ki tarah Kavita bhi pyari hai, mgar sach kahu....bass itna samjh aya ki kuchh Sair ke bare me hai....
    kripaya iska indi anuvad bhi bataiye
    shukriya :0

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    1. लोरी अली जी , टिप्पणी करने के लिए शुक्रिया ! मै सबसे पहले यह बताना चाहता हूँ कि गद्दी बोली बहुत ही छोटे- से क्षेत्र में बोली जाती है। इस बोली को इस्तेमाल करने वालों की संख्या लाखों में नही है। इस बोली को केबल कुछ हजार लोग ही बोलते है। यह हिमाचल प्रदेश की एक जनजातीय बोली है। जो लगभग लुप्त होने के कगार पर है। यह छोटी सी कविता सैर उत्सव पर लिखी है। सैर त्यौहार काले महीने के खत्म होने पर मनाया जाता है। काले महीने में हिन्दू -धर्म के अनुसार नव -विवाहित बहु और सास साथ -साथ नही रहती। इसलिए नव विवाहित बहुएं इस महीने में अपने मइके चली जाती है। इस कविता में ऐसी ही किसी वन विवाहित बहु का वर्णन किया है। जो काले महीने में अपने मइके गई हुई है और अपनी सहेलिओं से कह रही है। अरे सहेली मेरे दिल में जो दुःख है वो में कैसे बताउं। मुझे ऐसा पति मिला है जिसे सैरी और मघेरी त्योहारों के बारे में भी कोई जानकारी नही रहती। वो मुझे अपने से अलग ही नही करना चाहता। उसे मुझसे इतना प्यार है की वो दुनिया रीति -रिवाज ही भूल गया है

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