milap singh bharmouri

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Sunday 17 November 2013

हौंदा री रित आई

हौंदा  री  रित  आई 
ठंड बड़ी लगदी 
अक  बारी   बैखी  गे 
फिरि चुल्ल न छडदी  

नलके रे पानी  सोगी  
हथ्थ न लगदा 
भैगा  जंगला जो गंदे 
पूरा शरीर कमदा 

हथ्थ मुह धोई लैंदे  
छड़ी दिता नेइना  
शिडी रे बगैर भइओ 
किंया करी   जीना 

लैण्टरे  पवाडा   पौ  
नते निग्गी  थी  मंडई   
हिरखा- हिरखा मंज 
अज्ज कड़ी भी न रैयी 

लकड़ी रे मकान पर
अज्ज पाने भी किंया 
भित - दारी  बनाने जो ता
ईठी  मुल्दी  निआ 



................मिलाप सिंह भरमौरी